वैसोइ रथ वैसोइ सब साज।
मानहु बहुरि बिचारि कछू मन, सुफलक सुत आयौ ब्रज आज।।
पहिलैइ गमन गयौ लै हरि कौ, परम सुमति रापौ रति राज।
अजहूँ कहा कियौ चाहत है, यातै अधिक कंस कौ काज।।
व्याध जु मृगनि बधत सुनि सजनी, सो सर काढ़ि संग नहि लेत।
यह अकूर कठिन की नाई, हिऐ विषम इतनौ दुख देत।।
ऐसे वचन बहुत बिधि कहि कहि, लोचन भरि सोंचतिं उर गात।
'सूरदास' प्रभु अवधि जानि कै, चली सबै पूछत कुसलात।। 3478।।