बिनती सुनहु देव मघवापति।
कितिक बात गोकुल ब्रजबासी, वार-बार जो रिस अति।।
आपुन बैठि देखियै कौतुक, बहुतैं आयसु दीन्हौ।
छिन मैं बरसि प्रलय-जल पाटैं खोज रहै नहिं चीन्हौ।।
महा प्रलय हमरे जल बरसैं, गगन रहै भरि छाइ।
अछै बृच्छ बट बचत निरंतर, कह ब्रज गोकुल गाइ।।
चले मेघ माथैं कर धरि कै मन मैं क्रोध बढ़ाइ।
ऊमड़त चले इंद्र के पायक सूर गगन रहे छाइ।।854।।