वन पहुँचत सुरभी लई जाइ।
जैहौ कहा सखनि कौ टेरत, हलधर संग कन्हाइ।
जेंवत परखि लियौ नहिं हमकौं, तुम अति करी चँडाइ।
अब हम जैहैं दूरि चरावन, तुम सँग रहै बलाइ।
यह सुनि ग्वाल धाइ तहँ आए स्यामहिं अंकम लाइ।
सखा कहत यह नंद-सुवन सौं, तुम सबके सुखदाइ।
आजु चलौ बृंदाबन जैऐ, गैयाँ चरैं अघाइ।
सूरदास प्रभु हरषित भए, घर तैं छाँक मँगाइ।।444।।