लिखि आई ब्रजनाथ की छाप -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग सारंग


  
लिखि आई ब्रजनाथ की छाप।
ऊधौ बाँधे फिरत सीस पर, बाँचत आवै ताप।।
उलटी रीति नंदनंदन की, घर घर भयौ सताप।
कहियौ जाइ जोग आराधै, अविगत अकथ अमाप।।
हरि आगै कुबिजा अधिकारिनि, को जीवै इहिं दाप।
‘सूर’ सँदेस सुनावन लागे, कहौ कौन यह पाप।। 3489।।

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