रूसे ही पिय रूसे हौ।
उत्तर को उत्तर न देत तुम, हित तै हीन कछू से हौ।।
वह चितवनि न होइ नैननि कौ बैननि हूँ उत हूँसे हौ।
वह मुख कमल बिकास नहीं, रति सायक सिसिर बिदूसे हौ।।
की छुटि गई संपदा कर तै, की ठग ठगे कछू से हौ।
मेरै जान 'सूर' प्रभु साँचे, मदन चोर मिलि मूसे हौ।।2510।।