रावन से गहि कोटिक मारौं -सूरदास

सूरसागर

नवम स्कन्ध

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राग मारू


 
रावन से गहि कोटिक मारौं।
जो तुम आज्ञा देहु कृपानिधि, तौ यह परिहस सारौं।
कहौ तौ जननिा जानकी ल्याऊँ, कहौ तौ लंक विदारौं।
कहौ तौ अवहीं पैठि सुमट हित, अनल सकल पुर जारौ।
कहौ तौ सचिव-सबंधु सकल अरि, एकहि एक पछारौ।
कहौ तौ तुव प्रताप श्री रघुवर, उदधि पखाननि तारौ।
कहौ तौ दसौ सीस, बीसौ भुज, काटि छिनक मैं डारौ।
कहौ तौ ताकौ तृन गहाइ कै, जीवित पइनि पारौं।
कहौ तौ ताकौ चारु रचौं कपि, धरनी-ब्योम-पतारौं।
सैल-सिला-द्रुम बरषि, ब्यो म चढि़ सत्रु-समूह सँरौंहा।
बार-बार पद परसि कहत हौं, कबहूँ नहिं हारौं।
सूरदास प्रभु तुम्हरे वचन लगि, सिव, वचननि कौं टारौं॥108॥

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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