राधे सो रस बरनि न जाइ -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग सोरठ


राधे सो रस बरनि न जाइ।
जा रस कौ स्वरभानु सीस दियौ, सु तै पियै अकुलाइ।।
पचिहारे सब कोटि कला करि, चंद न ठिक ठहराइ।
अजहुँ कबध फिरत तिहिं लालच, सुंदरि सैन बुझाइ।।
मोहन तै न रूप रस आगरि, कटति न जानी काइ।
'सूरजदास' पपीहा कै मख, कैसै सिंधु समाइ।।2773।।

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