राधेहिं सखी बतावत री।
वैसोई रथ लागत मोकौ, उतही तै कोउ आवत री।।
चढ़ि आयौ अकूर जाहि पर, स्यंदन ब्रज तन धावत री।
वैसियै ध्वजा पताका वैसोई घर घर सबद सुनावत री।।
कोउ कहै स्याम, कहति को ए है, ब्रज तरुनी हरषावत री।
‘सूर’ स्याम जेहि मग पग धारे, तेहि मारग दरसावत री।।3458।।