राधिका मौन-ब्रत किनि सधायौ -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग गंड


राधिका मौन-ब्रत किनि सधायौ।
धन्य ऐसो गुरु, कान के लगतहीं मंत्र दै आजुहीं यह लखायौ।।
काल्हि कछु और प्रातहिं कछू औरही, अबहिं कछु और ह्वै गई प्यारी।
सुनत इहिं बात कौं दौरि आईं सबै, तोहिं देखत भईं चकृत भारी।।
अब कहौ बात या मौन कौ फल कहा, सुनि जु लीजै कछू हमहुँ जानैं।
एकहीं संग भई सबै जोबन नई, होहु अब गुरु हम तुमहिं मानैं।।
देहु उपदेस हमहुँ धरैं मौन सब, मंत्र जब लियौ तब हम न बोली।
सूर-प्रभु की नारि राधिका नागरी, चरचि लीन्हौं मोहिं करति ठोली।।1729।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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