राधा भूलि रही अनुराग।
तरु तर बदन करति मुरझानी, ढूंढ़ि फिरी बन-बाग।।
कवरी ग्रसत सिखंडी अहि भ्रम, चरन सिलीमुख लाग।
बानी मधुर जानि पिक बोलति, कदम करारत काग।।
कर-पल्लव किसलय कुसुमाकर, जानि ग्रस्तस भए कीर।
राका चंद चकोर जानि कै, पिवत नैन कौ नीर।।
बिहबल, बिकल जानि नंदनंदन, प्रगट भए तिहिं काल।
सूरदास प्रभु प्रेमांकुर उर, लाय लई भुज माल।।1126।।