राधा बसन स्याम तनु चीन्हो -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग कान्हरौ


राधा बसन स्यातम तनु चीन्हो।
सारँग-बदन, बिलास बिलोचन, हरि सारंग जानि रति कीन्हो।।
सारँग-बचन, कहत सारँग सौं, सारँग रिपु दै राखति झीनी।
सारँग-पानि गहत रिपु-सारँग, सारँग कहा कहति लियौ छीनी।।
सुधा पान करिकै नीकी बिधि, रह्यौ सेस फिरि मुद्रा दीन्ही।
सूर सूदेस आहि रति-नागर, भुज आकर्षि बाम कर लीन्ही।।1680।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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