राधा बसन स्यातम तनु चीन्हो।
सारँग-बदन, बिलास बिलोचन, हरि सारंग जानि रति कीन्हो।।
सारँग-बचन, कहत सारँग सौं, सारँग रिपु दै राखति झीनी।
सारँग-पानि गहत रिपु-सारँग, सारँग कहा कहति लियौ छीनी।।
सुधा पान करिकै नीकी बिधि, रह्यौ सेस फिरि मुद्रा दीन्ही।
सूर सूदेस आहि रति-नागर, भुज आकर्षि बाम कर लीन्ही।।1680।।