राधा कह्यौ आजु इन जानी।
बार-बार मैं हरितन चितई, तबही ये मुसुकानी।।
काल्हि कही मैं इनसौ वैसैं, अब तौ बात न ठानी।
यह चतुरई परी मोही पर, मन मन अतिहिं लजानी।।
मेरी बात गई इन आगै, अबहिं करति बिनु पानी।
‘सूरदास’ प्रभु कहा कहौ मैं, अब तुम हाथ बिकानी।।1767।।