ये अखियाँ बड़भागिनी, जिनि रीझे स्याम।
अँग ते नैकु न टारहीं, बासर अरु जाम।।
ये कैसी हैं लोभिनो, छवि धरतिं चुराइ।
और न ऐसी करि सकै, मरजादा जाइ।।
यह पहिलै मनहीं करी, अब तौ पछितात।
उनके गुन गुनि गुनि झुरै, याहूँ न पत्यात।।
इंद्री सब न्यारी परी, सुख लूटति आँखि।
'सूरदास' जे सँग रहै, तेऊ मरै झाँखि।।2407।।