या ब्रज तै दवरितु न गई।
ग्रीष्म प्रगट सखी री गोकुल, हरि बिनु अधिक भई।।
बिरह अगिनि अँग अंग सबनि कै, ग्रीषम प्रबल समान।
नैन नीर उर बहुत रेन दिन, पावस कौ जु प्रमोन।।
जा दिन तै बिछुरे नँदनंदन, बाढ़ी है तन ताप।
‘सूर’ स्याम बिनु तपति रैन दिन, अवधि धरैं उर छाप।। 152 ।।