याकै गुन मैं जानति हौं।
अब तौ आइ भई ह्याँ मुरली, औरहिं नातैं मानति हौं।
हरि की कानि करति, यह को है, कहा करौं अनुमानति हौं।
अबहीं दूरि करौं गुन कहिकै, नैंकु सकुच जिय मानति हौं।
यातैं लगी रहति मुख हरि के सुख पावत पहिचानति हौं।
सूरदास यह निठुर जाति की अब मैं यासौं ठानति हौं।।1255।।