यह सुनि हंसि चलौं ब्रज-नारि -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग नट


यह सुनि हंसि चलौं ब्रज-नारि।
अतिहिं आई गरब कीन्हे, गई घर झख मारि।
कबहुँ तौ हम देखिहैं, इक संग राधा-कान्ह।
भेद हमसौं कियौ राधा, निठुर भई निदान।।
बीस बिरियाँ चोर की तौ, कबहुँ मिलि हैं साहू।
सूर सब दिन चोर कौ कहुँ, होत है निरबाहु।।1741।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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