यह सुनि कै हलधर तहँ धाए।
देखि स्याम ऊखल सौं बाँधे, तबहीं दोउ लोचन भरि आए।
मैं बरज्यो कै बार कन्हैया, भली करी दोउ हाथ बँधाए।
अजहूँ छाँडौगे लँगराई, दोउ कर जोरि जननि पै आए।
स्यामहिं छोरि मोहि बांधैं बरु, निकसत सगुन भले नहिं पाए।
मेरे प्रान-जिविन-धन कान्हा, तिनके भुज मोहिं बँधे दिखाए।
माता सौं कह करौ ढिठाई, सो सरूप कहि नाम सुनाए।
सूरदास तब कहति जसोदा दोउ भैया तुम इक मत पाए।।370।।