यह सुख सुनि हरषीं ब्रजनारी -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग रामकली



यह सुख सुनि हरषीं ब्रजनारी। देखन कौं धाइं बनबारी।
कोउ जुवती आई, कोउ आवति। कोउ उठि चलति, सुनत सुख पावति।
घर-घर होति अनंद-बधाई। सूरदास प्रभु की बलि जाई।।70।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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