यह सब नैननिही कौ लागै -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग गौरी


यह सब नैननिही कौ लागै।
अपनैही घर भेड़ि करी इन, बरजत ही उठि भागे।
ज्यौ बालक जननी सौ अटकत, भोजन कौ कछु माँगे।
त्यौही ये अतिही हठ ठानत, इकटक पलक न त्यागे।।
कहत देहु हरि-रूप-माधुरी, रोवत है अनुरागे।
'सूर' स्याम धौ कहा चखायौ, रूप माधुरी पागे।।2358।।

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