यह संदेश कहत हौ ऊधौ -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग सारंग


 
यह संदेश कहत हौ ऊधौ, कहौ कौन पै पाए।
करियत है अनुमान एक मन, इहिं मिस हौ ह्याँ आए।।
हरि जू प्रथम नंदजसुमति गृह, नाना लाड़ लड़ाए।
उर उच्छंग कन्हैया लै लै, माखन खात सिखाए।।
सुबल श्रीदामा के सँग सब, ब्रज वीथिनि वीथिनि धाए।
कछु इक जान भए खेलन तब, गोधन संग पठाए।।
बेनु मधुर धुनि बोलत थेइ थेइ, संगहि नाच नचाए।
जल थल नित नूतन लीला करि, केते जुग बिरमाए।।
इहि बिधि बिबिध कुतूहल, छन छन किए आपने भाए।
कब मधुबन चले कब मारयौ रिपु, वचन अचभ जनाए।।
पाछे रहे सुनत मोहन प्रिय, उझकि उरस्थल लाए।
'सूरदास' प्रभु बूझत बतियाँ, सखियनि सैन बताए।।3657।।

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