यह मुरली सखि ऐसी है -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग नट


यह मुरली सखि ऐसी है।
रीझे स्याम बात सुनि मीठी, नहिं जानत य‍ह नैसी है।।
देखौ याके भेद सखी री, कैसैं मन दे पैसी है।
हम पर रहति भौंह सतराए, चतुर चतुराई जैसी है।।
वै गुन रहति चुराए हरि सौं देखो ऐसी गैसी है।
सुनहु सूर बैरनि भई हमकौं, प्रगट सौति ह्वै बैसी है।।1259।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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