यह न होइ जैसै माखन चोरी -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग बिलावल


यह न होइ जैसै माखन चोरी।
तब वह मुख पहिचानि, मानि सुख, देती जान हानि हुति थोरी।।
तब तिनि दिननि कुमार कान्ह तुम, हमहुँ हुती अपनै जिय भोरी।
तुम ब्रजराज बड़े के ढोता, गोरस कारन कानि न तोरी।।
अब भए कुसल किसोर कान्ह तुम, हौ भई सजग समान किसोरी।
जात कहाँ बलि बाहँ छुड़ाए, मूसे मनसपति सब मोरी।।
नखसिख लौ चितचोर सकल अँग, चीन्हे पर कत करत मरोरी।
इक सुनि 'सूर' हरयौ मेरौ सरबस, औ उलटी डोलति सँग डोरी।।1931।।

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