यहै कहत बसुदेव त्रिया जनि रोवहु हो 2 -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग जैतश्री


तुरत बदि तै छोरि, कह्यौ मैं कसहि मारयौ।
जोधा सुभट सँहारि, मल्ल कुबलया पछारयौ।।
जिय अपनै जनि डर करौ, मै सुत तुम पितु मात।
दुःख बिसरौ अब सुख करौ, तुम काहै पछतात।।
निहचै जननी जानि कंठ, धरि रोवन लागी।
तब बोले बलराम, मातु तुम तै को भागी।।
बार बार देवै कहै, गोद खिलाए नाहिं।
द्वादस बरस कहाँ रहे, मातु पिता बलि जाहिं।।
पुनि पुनि बोधत कृष्न लिखौ मेटै नहिं कोई।
जोइ जोइ मन की साध कहौ करिहौ मैं सोई।।
जे दिन गए सुतौ गए अब सुख लूटहु मातु।
तात नृपति रानी जननि, जाके मोसौ तात।।

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