मोहिं दोहनी दै री मैया -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

Prev.png
राग धनाश्री



मोहिं दोहनी दै री मैया।
खरिक माहिं अबहीं ह्वै आई, अहिर दुहत सब गैया।
ग्वाल दुहत तब गाइ हमारी, जब अपनी दुहि लेत।।
घरिक मोहिं लगि है खरिका मैं, तू जनि आवै हेत।
सोचति चली कुँवरि घर ही तैं खरिक गई समुहाइ।।
कब देखौं वह मोहन-मूरति, जिन मन लियौ चुराइ।
देखे जाइ तहाँ हरि नाहीं, चकृत भई सुकुमारि।।
कबहूँ इत, कबहूँ उत डोलति, लागी प्रीति-खँभारि।
नंद लिए आवत हरि देखे, तब पायौ बिस्राम।।
सूरदास प्रभु अंतरजामी, कीन्हौ पूरन काम।।679।।

Next.png

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः