मोहन गए आजु, तुम जाहु दाँव हम लेहिगी हो।
लालन हमहिं करे बेहाल, बहै फल देहिगी हो।।
आजुहिं दाँव आपनौ लेती, भले गए हौ भागि।
हा हा करते पाइनि परते, लेहु पितंबर माँगि।।
बेनी छोरत हँसत सखा सँग, कहत लेहु पट जाइ।
सौह करत हौ नंद बबा की, अपनी अपति कराइ।।
जौ मै लेहु पितांबर अबही, कहा देहुगे मोहिं।
इत उत जुवती चितवन लागी, रही परस्पर जोहि।।
एक सखा हरि पिया रूप करि, पठै दियौ तिन पास।
गयौ तहाँ मिलि संग तियनि कै, हँसत देखि पटवास।।
मोहिं देहु राखौ दुराइ कै, स्यामहि जनि लै देहु।
लियौ दुराइ गोद मैं राख्यौ, दाँव आपनौ लेहु।।
पितांबर जनि देहु स्याम कौ, यह कहि चमक्यौ ग्वाल।
'सूर' स्याम पट फेरत कर सौ, चकित निरखि ब्रजबाल।।2877।।