मोहन अपनी घेरि लै ग़इयाँ -सूरदास

सूरसागर

1.परिशिष्ट

भ्रमर-गीत

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यशोदाजी का सँदेस




मोहन अपनी घेरि लै गइयाँ।
बिडरी जातिं फिरति नहिं फेरी, डोलति है बन महियाँ।।
ग्वाल बाल जितनक फिरि फेरत, नहि पत्यातिं वे सइयाँ।
तनिक मुरलि की टेर सुनावहु, सबै परतिं है पइयाँ।।
बूडति बिरह सिंधु सब अबला, औधि आस पर थहियाँ।
‘सूर’ स्याम सौ जाइ कहौ कोउ, लै निकासि गहि बहियाँ।। 201 ।।

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