मैं तौ जो हरे हैं, ते तौ सोवत परे हैं, ये करे हैं कौनैं आन अँगुरीनि दंत दै रह्यौ।
पुरुष पुरान आनि कियौ चतुरानन, कै सोई प्रभु पूरन प्रगट इहाँ ह्वै रह्यौ?
उतै देखि धावै, इत आवै, अचरज पावै, सूर सुरलोक ब्रजलोक एक ह्वै रह्यौ।
बिवस ह्वै हार मानी, आपु आयौ नकवानो, देखि गोप-मंडली कमँडली चितै रह्यौ।।484।।