मैं तो राम-चरन चित दीन्हौं -सूरदास

सूरसागर

नवम स्कन्ध

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राग सारंग


 
मैं तो राम-चरन चित दीन्हौं।
मनसा, वाचा और कर्मना, बहुरि मिलन, कौ आगम कीन्हौं।
डुलै सुमेरु सेष-सिर कैपै, पच्छिम उदै करै बासर-पति।
सुनि त्रिजटी, तौहूँ नहिं छाड़ौं मधुर मूर्ति रघुनाथ-गात-रति।
सीता करति विचार मनहिं मन, आजु-काल्हि कोसलपति आवैं।
सूरदास स्वामी करुनामय, सो कृपाल मोहिं क्यौं बिसरावैं॥82॥

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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