मै जाने हौ जू नीकै तुम्है -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग देवगंधार


मै जाने हौ जू नीकै तुम्है ए हो प्यारे लालन, तही सिधारिए जहाँ लाग्यौ नयौ नेहरा।
मुख की भलाई तुम मोहू सौ करत आए, जानी जी की, तुम बिनु सूमो वाकौ गेहरा।।
निसि के सुख कौ कहै देत है अधर नैन, उर नख लागे अति छवि भई देहरा।
बेगि सवारो पावँ धारो 'सूर' स्वामी नतु, भीजैगो पियरी पट आवत है मेहरा।।2547।।

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