मैं अपनैं बल रहति स्याम सँग -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग बिहागरौ


मैं अपनैं बल रहति स्याम संग, तुम काहैं दुख पावति री।
मो पर रिस पावति हौ पुनि-पुनि, कछु काहुँहिं बतरावति री।।
तुमहुँ करौ सुख, मैं बरजति हौं, ऐसेहि सोर लगावति री?
कहा करौं मोहिं स्याम निवाजी, काहैं न दूरि करावति री।।
बृथा बैर तुम करति निसादिव, आछौ जनम गँवावति री।
सूर सुनहु ब्रजनारि सयानी, मूरख ह्वै समुझावति री।।1334।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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