(अरी माई) मेरौ मन हरि लियौ नंदढुटौना।
चितवनि मैं बाके कछु टोना।।
निरखत सुंदर अंग सलोना। ऐसी छवि कहुँ भई न होना।।
काल्हि रहे जमुना तट जौना। देख्यौ खोरि साँकरी तौना।।
बोलत नहीं रहत वह मौना। दधि लै छीनि खात रह्यौ दौना।।
घर घर माखन चोरत जौना। बाटनि घाटनि लेत है दौना।।
खेलतु फागु ग्वाल सँग छौना। मुरलि बजाइ बिसारै भौना।।
मो देखत अबही कियौ गौना। नटवर अँग सुभ सजे सजौना।।
त्रिभुवन मैं बस कियौ न कौना। 'सूर' नंदसुत मदनलजौना।।2884।।