मेरो मन अनत कहाँ सुख पावै -सूरदास

सूरसागर

प्रथम स्कन्ध

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राग देवगंधार




मेरो मन अनत कहाँ सुख पावै।
जैसैं उड़ि जहाज कौ पच्‍छी फिर जहाज पर आवै।
कमल-नैन कौ छाँड़ि महातम, और देव कौं ध्‍यावै।
परम गंग कौं छाड़ि पियासौ दुरमति कूप खनावै।
जिहिं मधुकर अंबुज-रस चाल्‍यौं, क्‍यौं करील फल भावै।
सूरदास-प्रभू कामधेनु तजि, छेरो कौन दुहावै।।168।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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