(मेरे) मोहन जल-प्रवाह क्यौं टारयौ।
बूझति मुदित जसोदा जननी, इंद्र कोप करि हारयौ।।
मेघबर्त्त जल बरषि निसा दिन, नैंकु न बेग निवारयौ।
बार बार यह कहति कान्हा सौं, कैसैं गिरि नख धारयौ।।
सुरपति आनि परयौ गहि पाइनि, ताकौं सरन उबारयौ।
सूर स्याम जन के सुखदाता, कर तै धरनि उतारयौ।।964।।