मेरे नैन चकोर भुलाने।
अह निसि रहत पलक सुधि बिसरे, रूप सुधा न अघाने।।
पल घटिका, घटि जाम, जाम दिन, दिनही जुग बर जाने।
स्वाद परे निमिषहुँ नहिं त्यागत, ताही माँझ समाने।।
हरि-मुख-बिधु पीबत ये व्याकुल, नैकहुँ नही थकाने।
'सूरदास' प्रभु निरखि ललित तनु, अंग अंग अरुझाने।।2305।।