मेरे नैना अटकि परे -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग बिहागरौ


मेरे नैना अटकि परे।
सुंदर-स्याम-अंग की सोभा, निरखत भटकि परे।।
मोर मुकुट लट घूँघरवारी, तामैं लटकि परे।
कुंडल-तरनि-किरनि-तै-उज्ज्वल-चमकनि चटकि परे।।
चपल नैन मृग-मीन-कंज-जित, अलि ज्यो लुब्धि परे।
'सूर' स्याम-मृदु-हँसनि लुभाने, हम तै दूरि परे।।2367।।

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