मेरे कुँवर कान्ह बिनु सब कुछ वैसेहि धरयौ रहै -सूरदास
सूरसागर
दशम स्कन्ध
राग सोरठ
मेरे कुँवर कान्ह बिनु सब कुछ वैसेहि धरयौ रहै।
को उठि प्रात होत लै माखन, को कर नेति गहै।।
सूने भवन जसोदा सुत के, गुन गुनि सूल सहै।
दिन उठि घर घेरत ही ग्वारिनि, उरहन कोउ न कहै।।
जो ब्रज मैं आनंद हुतौ, मुनि मनसा हू न गहै।
'सूरदास' स्वामी बिनु गोकुल, कौडी हू न लहै।। 3180 ।।