मुरली सुनत अचल चले -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग केदारौ


मुरली सुनत अचल चले।
थके चर, जल झरत पाहन, बिफल बृक्ष फले।।
पय स्रवत गोधननि थन तैं, प्रेम पुलकित गात।
झुरे द्रुम अंकुरित पल्‍लव, बिटप चंचल पात।
सुनत खग-मृग मौन साध्‍यौ, चित्र की अनुहारि।
धरनि उमँगि न माति उर मैं, जती जोग बिसारि।।
ग्‍वाल गृह-गृह सबै सोवत, उहैं सहज सुभाइ।
सूर-प्रभु बिनु रास के हित, सुखद रैनि बढ़ाइ।।1068।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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