मुरली सुनत अचल चले।
थके चर, जल झरत पाहन, बिफल बृक्ष फले।।
पय स्रवत गोधननि थन तैं, प्रेम पुलकित गात।
झुरे द्रुम अंकुरित पल्लव, बिटप चंचल पात।
सुनत खग-मृग मौन साध्यौ, चित्र की अनुहारि।
धरनि उमँगि न माति उर मैं, जती जोग बिसारि।।
ग्वाल गृह-गृह सबै सोवत, उहैं सहज सुभाइ।
सूर-प्रभु बिनु रास के हित, सुखद रैनि बढ़ाइ।।1068।।