मुरली कौ कह लागै री।
देखौ चरित जसोदा-सुत कौ, वह जुवतिनि अनुरागै री।।
यह दृढ़ नहीं, कहाँ तिहिं दोबल, ये उचटैं वह पागै री।
कर धरि अधर परसि आलिंगन, देत कहा उठि भागै री।।
वह लंपट, धूतिनि, टुनहाई, जानि बूझि ज्यौ खागै री।
सुनहु सूर वह यहई चाहैं, ता पर यह रिस पागै री।।1289।।