मानहु मेघ घटा अति बाढ़ी -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग मलार



मानहु मेघ घटा अति बाढ़ी ।
बरषत बान बूँद सेना पर, महा नदी रन गाढ़ी ।।
वरन वरन बादर बनैत अरु दामिनि कर करवार ।
गरज निसान घोर सखध्वनि, हय, गय हीस, चिघार ।।
उड़त धूरि धुरवा दसहूँ दिसि, सूर सक्ति जलधार ।
प्रगटत दुरत देखियत रवि सम, दोउ बसुदेव कुमार ।।
कुजर कूल गिरात रथी रथ, स्रोनित सलिल गँभीर ।
धनुष तरंग, भँवर स्यंदन पद, जलचर सुभट सरीर ।।
उड़त जु धुजा पताक छत्र रथ, तरुवर टूटत तीर ।
परम निसंक समर सरिता तट, क्रीड़त जादव वीर ।।
सूने किए भवन भूपति के, सुबस किए सुर लोक ।
छिनक मध्य हरि हरे कृपा करि, उन सबहिनि के सोक ।।
आनंदे मधुबन के बासी, गुनी नगर के लोक ।
जरासिंधु कौ जीति ‘सूर’ प्रभु, आए अपने ओक ।। 4162 ।।

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