माखन खाहु लाल मेरे आई। खेलत आजु अबार लगाई।
बैठहु आइ संग दोउ भाई। तुम जेंवहु मैया बलि जाई।
सद माखन अति हित मैं राख्यौ। आजु नहीं नैंकहुँ तुम चाख्यौ।
प्रातहिं तैं मैं दियो जगाइ। दतुवनि करि जु गए दोउ भाइ।
मैं बैठी तुव पंथ निहारौं। आवहु तुम पर तन मन वारौं।
ब्रज-जुवती सुनि-सुनि यह बानी। रोवति घरनि परीं अकुलानी।
सोक-सिंधु बूड़ी नँदरानी। सुधि-बुधि तन की सबै भुलानी।
सूर स्याम लीला यह कीन्हौ। सुख कै हेत जननि दुख दीन्हौ।।547।।