मधुकर मन सुनि जोग डरै।
तुमहूँ चतुर कहावत अतिही, इतौ न समुझि परै।।
औरौ सुमन अनेक सुगंधित, सीतल रुचि जु करै।
क्यौ तुमकौ अलि बिना सरोजहि, उर अंतर न अरै।।
दिनकर महा प्रताप पुंज बल, सबकौ तेज हरै।
क्यौ न चकोर छाँड़ि मृगअकहिं, बाकौ ध्यान धरै।।
उलटौइ ज्ञान सकल उपदेसत, सुनि सुनि हृदै जरै।
जंबू बृच्छ कहौ क्यौ लंपट, फल बर अब करै।।
मुक्ता अवधि मराल प्रान मम, जौ लगि ताहि चरै।
निबटै निपट ‘सूर’ ज्यौ जल बिनु, व्याकुल मीन मरै।।3921।।