मथुरापति जिय अतिहिं डरान्यौं -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग बिलावल



मथुरापति जिय अतिहिं डरान्यौ।
सभा माँझ असुरनि के आगैं सिर धुनि-धुनि पछितान्यौ।
ब्रज-भीतर उपज्यौ मेरी रिपु, मैं जानी यह बात।
दिनहीं दिन वह बढ़त जात है, मोकौं करिहै घात।
दनुज सुता पूतना पठाई, छिनकहिं माँझ सँहारी।
धींच मरोरि, दियौ कागासुर मेरैं ढिग फटकारी।
अबहीं तैं यह हाल करत है, दिन-दिन होत प्रकास।
सेनापतिनि सुनाइ बात यह, नृप मन भयौ उदास।
ऐसौ, कौन, मारिहै ताकौं, मोहिं कहै सो आइ।
वाकौं मारि अपुनपौ राखै, सूर ब्रजहिं सो जाइ।।60।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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