भूलौ द्विज देखौ अपनौ घर -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग बिलावल




भूलौ द्विज देखौ अपनौ घर।
औरहिं भाँति रची रचना रुचि, देखतही उपज्यौ हिरदै डर।।
कै वह ठौर छुड़ाइ लियौ किहुँ, कोऊ आइ बस्यौ समरथ नर।
कै हौं भूलि अनंतही आयौ, यह कैलास जहाँ सुनियत हर।।
बुधजन कहत द्रुवल घातक विधि, सो हम आजु लही या पटतर।
ज्यौ नलिनी वन छाँड़ि बसै जल, दाहै हेम जहाँ पानीसर।।
पाछे तै तिय उतरि कह्यौ पति, चलिए द्वार गह्यौ कर सौ कर।
'सूरदास' यह सब हित हरि कौ, द्वारै आइ भयो जु कलपतर।। 4237।।

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