भली बात सुनियत है आज।
कोऊ कमल नैन पठयौ है, तन बनाइ अपनौ सौ साज।।
पूछत सखा कहौ कैसे है, अब नाही करिबै कछु काज।
कंस मारि वसुधौ गृह आए, उग्रसेन कौ दीन्हौ राज।।
राजा भए कहाँ है यह सुख, सुरभी सँग बन गोप समाज।
अब सुनि ‘सूर’ करै को कौतुक, ब्रज मैं नाहि बसत ब्रजराज।। 3476।।