भरोसौ नाम कौ भारी।
प्रेम सौं जिन नास लीन्हौ, भये अधिकारी।
ग्राह जब गजराज धेरयौ, बल गयौ हारी।
हारि कै जब टैरि दीन्ही, पहुँचे गिरिधारी।
सुदामा-दारिद्र भंजे, कूबरी तारी।
द्रौपदी कौ चीर बढ़यौ, दुस्सासन गारी।
बिभीषन कौं लंक दीनी, रावनहिं मारी।
दास ध्रुव कौं अटल पद दियौ राम-दरबारी।
सत्य भक्तहिं तारिबे कौं, लीला बिस्तारी।
चेर मेरी क्यौं ढील कीन्हीं, सूर बलिहारी।।176।।
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