भजि मन नंद-नंदन-चरन -सूरदास

सूरसागर

प्रथम स्कन्ध

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राग केदारौ



            

भजि मन नंद-नंदन-चरन।
परम पंकज अति मनोहर, सकल सुख के करन।
सनक-संकर ध्‍यान धारत, निगम-आगम बरन।
सेस, सारद, रिषय, नारद, संत चिंतत सरन।
पद-पराग-प्रताप-दुर्लभ, रमा कौ हित-करन।
परसि गंगा भई पावन, तिहूँ पुर धर-धरन।
चित्त चिंतन करत जग-अध हरत, तारन-तरन।
गए तरि लै नाम केते, पतित हरि-पुर-धरन।
जासु पद-रज परस गौतम-नारि-गति-उद्वरन।
जासु महिमा प्रगटि केवट, धोइ पग सिर धरन।
कृष्‍न-पद-मकरंद पावन, और नहिं सरबरन।
सुर भजि चरनारबिंदनि, मिटै जीवन-मरन।।308।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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