बाजी हो बृंदावन रानी।
धन्य बंस-दुख-भंजनि गिरिधर कर धरि मोहिनि मानी।।
तरल रसाल अधरछवि कर लै मुरली सकल कहानी।
कुंज खोह करु करत तपी तप तिन तन तपति सिरानी।।
अंबर घेरि घटा घन आए रही धार धरि पानी।
बूझत बाल गुपाल सखा सौं कृत्रिम कहँ तै आनी।
मुख जनराज श्री सुंदर हरि मुख ‘सूर’ सबै जग जानी।। 17 ।।