पिछवारै ह्वै बोलि सुनायौ।
कमलनयन हरि करत कलेऊ, कर नाहिंन आनन लौ आयौ।।
गाइ एक बन ब्याइ रही है, याही मिस आतुर उठि धायौ।
बेनु न लियौ, लकुट नहि लीन्ही, हरबराइ कोउ सखा न बुलायौ।।
चौंकि परे चकित ह्वै जित तित, सत्य आहि की सुपन भुलायौ।
फूरे फिरत अंक नहि मावत, मानहुँ सुधाकिरनि छबि छायौ।।
मिलि बैठे संकेत-लता-तर, कियौ सबै जितनौ मन भायौ।
'सूरदास' सुंदरी सयानी, उलटि अंक गिरिधर पर नायौ।।1985।।