पालनौ अति सुंदर गढ़ि ल्याउ रे बढ़ैया -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग काफी


पालनौ अति सुंदर गढ़ि ल्याउ रे बढ़ैया।
सीतल चंदन कटाउ, धरि खराद रंग लाउ,
बिविध चौकरी बनाउ, धाउ रे बनैया।
पँच रँग रेसम लगाउ, हीरा मातिन मढ़ाउ,
बहु बिधि जरि करि जराउ, ल्याउ रे जरैया।
बिसकर्मा सूतहार, रच्यौ काम ह्वै सुनार,
मनिगन लागे अपार, काज महर-छैया।
आनि धरयौ नंद-द्वार, अतिहीं सुंदर सुढार।
ब्रज-वधु कहैं बार-बार धन्य रे गढै़या।
पालनौ आन्यौ बनाइ, अति मन मान्यौ सुहाइ,
नीकौ सुभ दिन सुधाइ, झूलौ हो झूलैया।
सखियन मंगल गवाइ बहु विधि बाजे बजाइ,
पौढ़ायौ महल जाइ, बारौ रे कन्हैूया।
सूरदास प्रभु की माइ जसुमति, पितु नंदराइ,
जोइ जोइ मांगत सोइ देत हैं बधैया।।41।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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