पाती लिखि उधौ कर दीन्हीं।
नंद जसोदहि हित करि दीजौ, हँसि उपँगसुत लीन्ही।।
मुख बचननि कहि हेत जनायौ, तुम हौ हितू हमारे।
बालक जानि पठए नृप डर सौ, तुम प्रति पालनहारे।।
कुबिजा सुन्यौ जात ब्रज ऊधौ, महलहि लियौ बुलाइ।
अपने कर पाती लिखि राधेहिं, गोपिनि सहित बड़ाइ।।
मोकौ तुम अपराध लगावति, कृपा भईं अनयास।
झुकति कहा मो पर ब्रज नारी, सुनहु न ‘सूरजदास’।। 3443।।